लुप्त होती लोक संस्कृति को बचाने फिर जीवन्त हुआ फागुन




folk art

बस्ती – ख़त्म होते जा रहे लोक संस्कृति को बचाने के लिए आज एक अनोखी पहल देखने को मिली | फागुन मास में रंगो के पर्व होली से पूर्व लोक कला, संस्कृति को बचाने, समृद्ध करने और उसे सहेजने के संकल्पों को लेकर लोक कलाकारों ने बस्ती सदर के बन्तला गांव में रविवार को कला के विविध रंगों को जीवन्त किया। ‘होली खेलै रघुवीरा, अवध में होली खेले रघुवीरा’ जैसे अनेक गीतों के बीच श्रीराधे का अमिट प्रेम मंच पर जब साकार हुआ तो अतिथि और आसपास के गांवों के लोग झूम उठे। लोगों ने इसका भरपूर आनन्द उठाया |भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय , लोक कला सांस्कृतिक संस्थान द्वारा प्रोडक्शन ग्राण्ट के तहत रघुवीरा और अवधी विधा पर लोक गायन और अवधी विधा पर कलाकारों ने ऐसा शमा बाधा मानो समय की रफ्तार रूक सा गया हो।




गायन और संगीत के क्षेत्र में नयी पीढी को दिशा दे रही रंजना अग्रहरि ने कहा कि संगीत के बिना जीवन नीरस हो जाता है। पेड,  पौधे, प्रकृति सब जगह संगीत है। आज हमारे जीवन से कला, संगीत का लोप हो रहा है जिसके कारण अवसाद की स्थितियां बन रही है। जरूरत है कला को संरक्षित करते हुये नया आयाम देने की। डा. कुलदीप सिंह ने कहा कि लोक कलायें, गीत संगीत बिखरा हुआ है, उसे बचाने, विकसित करने के लिये जमीनी धरातल पर पहल करना होगा।  मां सरस्वती वंदना से आरम्भ कार्यक्रम में सोनू मोनू झांकी ग्रुप द्वारा फूलों की होली, राधा कृष्ण झांकी नृत्य प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया।




अनामिका द्वारा प्रस्तुत मंगल गीत ‘‘ जादू बा तोहरे घरनवा में, जादू बा’ हरितका पंत, ईशू दूबे, गीता सोनी, रामजीत शर्मा, डा. लालजी मौर्या, खुशी, प्रिया एण्ड पार्टी, मोहिनी, शीलम, अनुराग श्रीवास्तव आदि कलाकारों ने गीत, नृत्य संगीत प्रस्तुत किया। आयोजक एल.के. तिवारी ने कलाकारों और उपस्थिति जनों के प्रति आभार व्यक्त करते हुये लोक कला, संगीत, संस्कृति के संरक्षण का आवाहन किया। भरत सिंह विष्ट, वृहस्पति कुमार पाण्डेय, शम्भू प्रसाद शुक्ल, वृजेश शुक्ल, सचिन्द्र शुक्ल, लक्ष्मी शंकर, कौशल शुक्ल, बबिता गौतम, संजय के साथ ही बड़ी संख्या में लोक कलाकार और स्थानीय लोग मौजूद रहे। 
Report- Rakesh Giri

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