जहाँ झूला पड़ने के साथ होती है सारी दुनिया में झूलनोत्सव की शुरुआत

पूरी दुनिया में यह वह स्थान है जँहा झूला पड़ने के साथ ही पूरी दुनिया में झूलनोत्सव की शुरुआत हो जाती है | झूलनोत्सव का एक पूरा इतिहास है जो धार्मिक ग्रंथो से होता हुआ आमजनमानस के ह्रदय में बसता है| इस इतिहास का केंद्र बिंदु है अयोध्या जो पूरी दुनिया में धर्मनगरी के रूप में जानी जाती है | अयोध्या अपने में जो इतिहास समाए है उसमे झूलनोत्सव के लिए सारी दुनिया में जाना जाने वाला मणि पर्वत भी है | श्रावण मास की तृतीया को यंहा एक साथ कई झूले पड़ते है और इन्ही झूलो में अयोध्या के सभी प्रमुख मंदिरों से भगवान के विग्रह लाकर झुलाए जाते है | यंहा झूला पड़ने के बाद ही अयोध्या के सभी मंदिरों में झूले पड जाते है और देश में ही नहीं विदेशो में भी झूलनोत्सव महोत्सव की शुरुआत हो जाती है|
मणिपर्वत का क्या है महत्त्व
सावन माह में मणि पर्वत का पौराणिक महात्म्य है| मणि पर्वत से शुरू अयोध्या के झूला मेले में लाखों श्रधालुओं भगवान के विग्रह रूप के दर्शन करते है और उन्हें झूला झुला कर पुण्य के भागी बनते है| अयोध्या ही नहीं आस -पास के स्थानों में भी सबसे ऊंचाई पर स्थित मणि पर्वत किसी पहाड़ की ही सरीखा है जिस पर एक के ऊपर कई पेड़ क्रम बद्ध ऊंचाई में लगे हुए है | मणि पर्वत को लेकर ग्रंथो में कई कहानिया है | रुद्रयामलय ग्रन्थ के अनुसार “विद्याकुंडातप्स्चिमे च पर्वतो राजते प्रिये …..जानकी प्रीति जनना :पर्वतोंमणि …अर्थात अयोध्या के विद्या कुण्ड के पश्चिम भाग में मणि पर्वत नामक तीर्थ है जहा जानकी की प्रसन्नता के लिए रामचंद्र जी ने देवलोक से दिव्य मनको का ढेर लगवाया जो पर्वताकार रूप में हो गया|
मणिपर्वत का कैकेयी की माला से क्या है रिश्ता
प्रचलित कथाऔ और मणिपर्वत के अपने ग्रन्थ के अनुसार एक अत्यंत रोचक कथा है मणि पर्वत की| इसके अनुसार रामचंद्र जी शादी के बाद अयोध्या वापस आने पर माता कैकेई का दर्शन करने गए तो उन्होंने एक मणियों से बनी माला उपहार स्वरुप राम को दी | राम ने यह माला सीता को यह कहते हुए दे दी की आपके ऊपर यह अधिक सुन्दर लगेगी , लेकिन सीता ने कहा की आप भी ऐसी माला पहनेगे तभी मैं यह माला पहनुगी अकेले नहीं तब रामचंद्र जी ने कहा की यह माला तो माता से उपहार में मिली है अब मैं उनसे दूसरी माला कैसे मांगू लिहाजा आप पहन लो जब ऐसी कोई माला मिलेगी तो मैं पहन लूँगा| राम के अनुरोध के चलते सीता ने वह माल रख तो ली लेकिन अंकेले पहनी नहीं | अगले दिन जब माता कैकेई ने राम कोमाला पहने नहीं देखा तो राम से तो कुछ नहीं पूछा लेकिन इसके कारण का अपने तौर पर पता किया तो उन्हें पता चला की राम ने माला क्यों नहीं पहनी है और उनकी दी माला को सीता ने क्यों नहीं पहना है |
कैसे बना मणिपर्वत और कौन है इसका जनक
कैकेई को जब माला न पहनने के कारणों की जानकारी हुई तो उन्होंने महाराज दशरथ से वैसी ही माला लाने को कहा . महाराज दसरथ ने अपने खजाने और आस पास के क्षेत्रो में भी उस तरह की मणियों की माला तलाशने को कहा लेकिन उस तरह की मणि की माला कही नहीं मिली लिहाजा सीता को जब इसका पता लगा तो उन्होंने अपने पिता जनक को सन्देश भेजा क्योकि यह मशहूर था की राजा जनक के पास मणियों का बहुत बड़ा खजाना है .सन्देश पाकर जनक ने ढेर सारे पशु और बग्घिया पर मोतियों लाद कर भेजी .मोतिया इतनी अधिक थी की राज दशरथ ने उन्हें महल से कुछ फांसले पर रखवा दी .जिस स्थान पर यह मणियाँ रखी गई वहा मणियों का पर्वत सा बन गया इसी स्थान को मणि पर्वत कहा गया .
मणिपर्वत और झूलनोत्सव की परम्परा
ऐसी मान्यता है कि जनक नंदिनी स्वय सखियों संग आमोद क्रीडा करने इसी मणि पर्वत पर जाया करती थी | यंहा वह सखियों संग झूला झूलती थी | इसी लिए संत साधक उसी परम्परा के अनुसार यहाँ युगल सरकार के स्वरूपों की झूलन झांकी सजाकर मंगल कामना करते है| इस मणि पर्वत पर सावन मास में अयोध्या के सभी महत्वपूर्ण मंदिरों से सोभा यात्रा निकल कर यहाँ पहुँचती है और झूलन झांकी में बदल जाती है| अयोध्या के सावन झूले मेले में देश के कोने कोने से लाखों श्रद्धालू भगवान के दर्शन को आते हैं | अयोध्या के राम वल्लभा कुँज , बड़ा स्थान , लक्ष्मणकिला बड़ा भक्तमाल समेत सैकडों मंदिरों से सीता राम के विग्रह गाजे बाजे के साथ मणि पर्वत पर लाये जाते हैं और यहाँ आये लाखों भक्त उन्हें झूले में झुला कर अपने धन्य करते हैं | इसके अलावा घंटों कतार में खड़े रहकर श्रद्धालू मणिपर्वत पर बने मंदिर में दर्शन करते हैं| मणि पर्वत की घुमाव दार सीढियों पर दूर दूर से आए दर्शनार्थी कई चक्रो में चढ़ते है इसी लिए सावन में सुरक्षा की इतनी ब्य्वस्था यहाँ की जाती है जितनी किसी छोटे मोटे जिले को चलने में इस्तेमाल होती है |