एक ऐसी महिला जिसने दिव्यांग बच्चों के लिए कर दिया जीवन समर्पित
अयोध्या। दिव्यांग बच्चों का जीवन संवारने के लिए इन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। इन्हें दिव्यांगों का मसीहा कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। दिव्यांग बच्चों के लिए ये किसी भगवान से कम नहीं है। इन्होंने अपना जीवन उन बच्चों के नाम कर दिया जो दिव्यांग हैं। हम बात कर रहे हैं रामनगरी अयोध्या की विख्यात समाजसेविका डॉ.रानी अवस्थी की। पैंतीस साल तक कोई संकल्प जीवित रहे, ऐसा कम ही होता है। डॉ.रानी अवस्थी की तरह जिद भी तो सबकी नहीं होती। इलाहाबाद की डॉ.अवस्थी 1980 में अयोध्या घूमने गई थीं। वहां मंदबुद्धि बच्चों को भीख मांगते देख, उनका मन पीड़ा से भर गया। तभी उन्होंने सोच लिया कि इनके लिए कुछ करना है। जब उन्होंने अपने मन की बात पति को बताई, तो वे भी इस काम में मदद करने के लिए तैयार हो गए। इस तरह 1981 में फैजाबाद में मंदबुद्धि और मूक.बधिर बच्चों के लिए एक स्कूल खोला। इसके बाद तो मानो रानी अवस्थी की जिंदगी ऐसे बच्चों को ही समर्पित हो गई हो।
अयोध्या में स्थापित किया है मंद बुद्धि मूक बधिर विद्यालय
दिव्यांग बच्चों को शिक्षा प्रदान कर स्वावलम्बी बनाने की बीड़ा डॉ.रानी अवस्थी ने उठाया। इसी उद्देश्य से इन्होंने स्वर्ग द्वार मोहल्ले में एक मूकबधिर विद्यालय की स्थापना की। इस विद्यालय में इन दिव्यांग बच्चों को इंटर तक की शिक्षा दी जाती है। इस स्कूल की संचालिका डॉ.रानी अवस्थी का जन्म इलाहाबाद में हुआ था। लेकिन इन्होंने राम की नगरी अयोध्या को अपना कर्म भूमि बनाया। डॉ.रानी अवस्थी का कहना है कि 35 वर्ष पूर्व वह अयोध्या दर्शन करने आई। यहां इन्होंने उन बच्चों को मांग कर खाते देखा जो शारीरिक रूप से अक्षम थे। मन में बड़ा कष्ट हुआ और इन्होंने इन दिव्यांग बच्चों को स्वावलम्बी बनाने की ठानी। डॉ.रानी अवस्थी बताती हैं कि दिव्यांग बच्चों को साइन मेथड से शिक्षा दी जाती है। इसके आलावा इन बच्चों को सांस्कृतिक कार्यक्रम, जुडो कराटे, व खेल जगत की भी शिक्षा दी जाती है। यहां से शिक्षा प्राप्त निकले बच्चे देश में अपनी भूमिका से न्याय कर रहे हैं। कई बच्चे सरकारी सेवा में भी नौकरी कर रहे हैं।
समाजसेवा के लिए अब तक मिल चुके हैं 60 से अधिक पुरस्कार
दिव्यांग बच्चों की सेवा का सफर यहीं तक नहीं रूकता। डॉ.रानी अवस्थी अब तक करीब दस हजार शारीरिक और दिमागी रूप से अशक्त बच्चों को शिक्षा एवं रोजगार प्रशिक्षण दे चुकी हैं। वह कहती हैं,हर बच्चा जमीं पर तारे के रूप में आता है। ऐसे में शारीरिक और दिमागी रूप से अशक्त बच्चों की उपेक्षा क्यों उन्हें भी पढ़ने का अधिकार है वे भी समाज की मुख्य धारा से जुड़े। इन तारों के बीच एक मां और एक शिक्षिका की भूमिका निभाती रानी अवस्थी को अपने काम पर संतोष है। इलाहाबाद छोड़ा था, तो मन में एक डर था। अब तो फैजाबाद ही घर लगता है। लाचार और अक्षम बच्चों को शिक्षित करने और रोजगार दिलाने के साथ-साथ वे अनाथ बच्चों, पैदा होते ही फेंक दी गई कन्याओं के पुनर्वास, बुजुर्गों को सहारा देने और अपंगों को तिपहिया साइकिल आदि देने का कार्य भी निःशुल्क कर रही हैं।दिव्यांगों के लिए किये जा रहे इस समाजसेवा के कार्य के लिए इन्हें अब तक इन्हें 60 से अधिक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। जिनमे से तीन पुरस्कार तो राज्य स्तरीय हैं । उनकी इस मुहिम में महिला होना डॉ. रानी अवस्थी के रास्ते में कभी बाधा नहीं बना। डॉ. रानी अवस्थी का कहना है कि इस काम में बहुत सी बाधाएं आई लेकिन अपने संकल्प के प्रति दृढ संकल्प होना मेरा मार्ग प्रशस्त करता रहा और आज भी मैं दिव्यांगों की सेवा में तत्पर हूं। आगे भी ये प्रयास जारी रहेगा।
Report- Nitin Mishra