जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना जेएनयू अधिनियम 1966 के अन्तर्गत भारतीय संसद द्वारा 22 दिसम्बर 1966 में की गई । यहां के छात्र संघ का बडा महत्व माना जाता है। यहां के कई छात्र संघ सदस्यों ने बाद के दिनों में भारतीय राजनीति और सामाजिक आंदोलनों में अहम भूमिका निभाई है, इनमें प्रकाश करात , सीताराम येचुरी , डी पी चौधरी ,आनंद कुमार , चंद्रशेखर आदि प्रमुख हैं। जेएनयू छात्र राजनीति पर शुरू से ही वामपंथी छात्र संगठनों आल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आईसा ) स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (एस . एफ आई ) आदि का वर्चस्व रहता रहा है ।
शिक्षा का शिखर तो विवादों का काला अध्याय भी
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) राष्ट्र विरोधी गतिविधयों के आरोप के कारण सुर्खियों में है। इस बार जेएनयू में हमेशा से सक्रिय वाम दल गंभीर सवालों के घेरे में है और लंबे समय से जेएनयू में पैठ बनाने की कोशिश में लगी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) भी मौके की नजाकत को समझते हुए अपनी राजनीति का दांव खेल चुका है। इसको लेकर सबसे बड़ा खुलासा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने किया है कि इन छात्रों को लश्कर-ऐ- तैयबा के आतंकी हाफिज सईद का समर्थन प्राप्त है। अगर यह बयान सही है तो यह बेहद चौंकाने वाला मामला है।
छात्र संघो को अधिकार
देशभर के विश्वविद्यालयों को JNU जैसा अधिकार नही मिला है .जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के बारे में हम कुछ रोचक जानकारियां बताते है जिन्हें आप सभी को जानना जरुरी है |
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1. JNU दिल्ली में कुल 1019 एकड़ में फैली हुई है |
2. JNU में वार्षिक फीस तक़रीबन 300/- रुपये है |
3. JNU के हॉस्टल में रूम का किराया मात्र 11/- रुपये प्रति महीना है |
4. JNU हॉस्टल की मेस में खाना करीब-2 फ्री है |
5. JNU में हर 6 छात्र पर 1 प्रोफेसर है |
6. JNU में सन 1990 में 11 हॉस्टल थे जिनकी संख्या अब 22 हो चुकी है |
7. JNU में एक छात्र पर साल में तक़रीबन 11.25 लाख रुपये का खर्चा
आता है |
8. केंद्र सरकार ने 2014-15 में JNU को 42 करोड़ की सब्सिडी दी है |
इतना कुछ होने के बावजूद JNU में कैसी शिक्षा दी जाती है इसके लिए शिक्षक भी कम जिम्मेदार नहीं हो सकते और न जो कुछ हो रहा है उससे अपने आपको अलग कर सकते है |
1. भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह
2. अफजल हम शर्मिंदा है तेरे कातिल जिन्दा है
3. लड़कर लेंगे आजादी, कश्मीर मांगे आजादी
4. पाकिस्तान जिंदाबाद, पाकिस्तान जिंदाबाद
देश-द्रोह और आतंक की जडे कहाँ-कहाँ और किस-किस रूप में अपनी जड़ें जमा चुकी है कुछ लोग अलग अलग राजनीतिक पार्टियों को कोसते रह गए और देश के गद्दारों ने देश और जान की कीमत कौड़ियों के भाव लगा दी |
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