परिवारवाद के बीच रो पड़ा समाजवाद !
परिवारवाद के झगडे में फंसा समाजवाद आज अपने को बहुत बेबस महसूस कर रहा है । महसूस करे भी क्यों न आज उसी का परचम उठाने वाले लोग ही उसे रौंद रहे है । ऐसा तो उसने कभी सोचा भी न था कि एक परिवार ही उसकी पहचान बन जाएगा और उसी जे नाम पर राज करेगा और उसी को हासिल करने के लिए परिवार का हर एक सदस्य साजिशों के ताने बाने बुनेगा । उसे क्या पता है कि साजिशें चाहे जिसके लिए हो लेकिन घायल समाजवाद ही होगा । वही समाजवाद जिसने हर बार सत्ता की कुर्सी तक पहुँचाया है । यह कितनी बिडम्बना है कि आज समाजवाद रो रहा है और उसी का झंडा उठाए लोग उसके मातम पर अपनी जीत जा जश्न मना रहे है ।