जानिये क्या है साइकिल और मुलायम के दिल का रिश्ता
ज्यादातर लोग यही जानते है कि साइकिल समाजवादी पार्टी और मुलायम का चुनाव निशान है। लेकिन कम ही लोग जानते है कि मुलायम ने साइकिल ही चुनाव निशान क्यों लिया और साइकिल से उनका अगाध प्रेम क्यों है और साइकिल से उनका रिश्ता बना आखिर कैसे। .? हम आपको बताते है कि जिसे हम महज पार्टी का चुनाव निशान साइकिल समझते है वह मुलायम के दिल और आत्मा में कैसे अंदर तक बसी है। इसके लिए हम आपको मुलायम के राजनेता बनने के पहले का एक किस्सा सुनाते है।दरअसल बचपन से ही मुलायम सिंह यादव को साइकिल का शौक था। लेकिन 1960 में जब मुलायम इटावा के के के डिग्री कालेज में पढ़ाई कर रहे थे। उन्हें घर से रोज 20 किलोमीटर आना – जाना पड़ता था। इसीलिये मुलायम को एक साइकिल की जरुरत महसूस होती थी। लेकिन घर में इतना पैसा नहीं था कि साइकिल के लिए पिता से कह पाते। एक दिन मुलायम सिंह यादव और उनके दोस्त रामरूप उजियानी गावँ में किसी काम से गए। दोपहर का समय होने के नाते उस समय लोग गावँ की चौपाल में ताश खेल रहे थे। मुलायम और रामरूप भी उसमे शामिल हो गए। उस समय गावँ गिंजा के आलू व्यवसाई लाल रामप्रकाश गुप्ता भी ताश खेल रहे थे।ताश की बाजी के बीच लाला जी ने एलान कर दिया कि जीतने वाले को राबिनहुड साइकिल दी जाएगी। सौभाग्य से मुलायम ने वह बाजी जीत ली और ईनाम में मिली राबिनहुड साइकिल। जो बाद में समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह बन गई ..
अखिलेश और मुलायम की साइकिल में क्या है अंतर
लेकिन 1960 की मुलायम की साइकिल और 2017 में अखिलेश की साइकिल में बड़ा फर्क है।मुलायम की साइकिल जरुरत से होते हुए पार्टी के चुनाव निशान तक पहुँची और फिर परिवारवाद का सफर तय करते हुए आज अखिलेश और उनके बीच कब्जे के लिए रार की वजह बन गई है। जबकि अखिलेश साईकिल से मर्सडीज कंपनी के बनाये रथ तक पहुँच गए है। यंहा तक की 2014 में शिकोहाबाद से सैफई जाने के लिए अखिलेश साइकिल यात्रा पर निकले , लेकिन मुलायम वाली साइकिल पर नहीं बल्कि मर्सडीज कंपनी की साइकिल से बनवाई हुई स्पेशल साइकिल थी।जिसकी कीमत साढ़े 4 लाख रुपये थी।नवम्बर 2016 में जब अखिलेश ने लखनऊ से रथ यात्रा निकाली थी तब भी रथ मर्सडीज कंपनी ने ही तैयार किया था … जाहिर है मुलायम का रिश्ता साइकिल से दिल का है तो अखिलेश का उस चुनाव निशान से जिसे मतदाता पहचानता है और समाजवादी ;पार्टी को वोट करता है …