क्या नेताजी खुद चाहते थे अपने पुत्र को जिताना!

समाजवादी पार्टी  में  पिता-पुत्र की जंग में अखिलेश ने जिस पिता से राजनीति सीखी थी उसे ही आज पीछे छोड़ दिया | इसे एक पिता के लिए ख़ुशी समझे या अपने ही बेटे से हारने का गम |what mulayam singh yadav himself want akhilesh yadav win अखिलेश यादव ना सिर्फ संख्या बल में अपने पिता मुलायम सिंह यादव पर भारी पड़े, बल्कि कानूनी दाव-पेंच में भी वे पिता से ज्यादा  होशियार  दिखाई दिए। आयोग ने माना है कि उत्तर प्रदेश के 228 में से 205 विधायकों और मुलायम को छोड़ सभी लोकसभा सांसदों ने अखिलेश के समर्थन का शपथपत्र दिया। इसी तरह रामगोपाल को पार्टी से निकालने से ले कर टिकट बांटने तक में मुलायम ने सामान्य से नियमों का दिखावे तक के लिए पालन नहीं किया। सपा के झगड़े पर सोमवार को आए आयोग ने 42 पन्ने के लंबे-चौड़े आदेश में कई ब्योरे बेहद दिलचस्प हैं।

मगर चुनाव आयोग की माने तो मुलायम सिंह यादव द्वारा ऐसा कोई भी दावा या सपथपत्र पेश ही नहीं किया गया जैसा अखिलेश यादव की तरफ से किया गया जिससे ये साबित हो सके की ये पार्टी उनकी है वही अखिलेश यादव और रामगोपाल की तरफ से सारी जानकारियों के साथ-साथ अपने समर्थन में 228 में से 205 विधायकों, 68 में से 56 विधान पार्षदों, 24 में से 15 सांसदों, 46 में से 28 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों और 5731 में से 4716 डेलीगेट के शपथपत्र सौंपे थे |

क्या नेताजी  खुद चाहते थे अपने पुत्र को जिताना

राजनीति को अपने खून -पसीने से सीच कर इस मुकाम तक लाने में मुलायम सिंह यादव का बहुत बड़ा योगदान है | राजनीति के इतने सालो के अनुभव और राजनीति की हर एक चाल को समझने वाले नेताजी के हाथो से पार्टी का निकल जाना महज एक संयोग है या नेताजी खुद ही अपने पुत्र अखिलेश यादव को जीतता हुआ देखना चाहते थे! आखिर मुलायम सिंह यादव ने अपने समर्थन में लोगो के हलफनामे में बहुत सी गलतियाँ क्यूँ थी  और दावा इतना हल्का क्यूँ था ! क्या अखिलेश यादव ने मुलायम की सालो से बनाई पार्टी को महज 5 सालो में अपना बना लिया या इसमें भी नेताजी का योगदान था ! इस सब विवाद से अगर किसी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है है तो वो है शिवपाल यादव जिनके हाथो से सबकुछ चला गया है जिसका अंदाजा उनके शायद उन्हें यह विवाद शुरू हुते ही हो गया गया था जिसपर उन्होंने यह गाना भी गया था ..

कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या, कोई किसी का नहीं ये झूठे नाते हैं नातों का क्या कसमे वादे प्यार वफ़ा…

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