राजनीति में खुद के साथ हुआ गेस्ट हाउस कांड भूल गई मायावती, थाम लिया सपा का दामन

लखनऊ- किसी ने सच ही कहा है कि राजनीति में न कोई दुश्मन होता है और न ही दोस्त. कुछ यही हुआ है सपा और बसपा के बीच 25 साल की दूरी ख़त्म हो गयी है. स्टेट गेस्ट हाउस कांड के बाद से समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच दुश्मनी का जो दौर था वह अब ख़त्म हो गया है. कभी जो नंबर एक का दुश्मन था अब वह दोस्त हो गया है. फूलपुर और गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में होने वाले चुनाव में समाजवादी उम्मीदवारों को मायावती ने समर्थन दे दिया है. अब इसके पीछे की राजनीति को आपको समझना होगा. बसपा ने समर्थन देने के एवज में राज्यसभा में अपने एक उम्मीदवार को जिताना चाहती है क्योकि मई में विधान परिषद के 13 सीटें रिक्त होंगी जिनके लिए चुनाव अप्रैल में होगा. इसके साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव में अपनी साख बचाने का भी प्रयास है.

akhilesh and mayawati

बुआ और भतीजा एक सुर में बोलने पर मजबूर

उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की दस सीटों के लिए सोमवार से नामांकन पत्र दाखिल करना शुरू हो जायेगा. सूत्रों की माने तो इसी चुनाव ने सपा-बसपा को एक कर दिया है और दोनों एक सुर में बोल रहे है. ख़बरों की माने तो बसपा अपने एक सदस्य को सपा के सहारे राज्यसभा में भेजने के बदले विधान परिषद के चुनाव में सपा का साथ देगी. अगर इसमें कुछ खलल नहीं पड़ती है तो राज्यसभा में मायावती या तो खुद या अपने भाई आनंद कुमार को राज्यसभा में जाएँगी. आनंद कुमार को राज्यसभा भेजने की वजह विभिन्न जांचों में फंसा होना बताया जा रहा है. आपको बता दे कि सपा के 47 विधायक है और बसपा के 19 विधायक है.

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