मेरा कसूर इतना की मैं सिपाही हूँ , एक सिपाही की कलम से
उत्तर प्रदेश में नई सरकार आई जिसने आने से पहले ही कानून व्यस्था सुधारने की बात कही थी. आइये गौर करते है पुलिस विभाग की खामियों की. क्या हर साल स्थानांतरण से कानून व्यवस्था ठीक हो जाएगी. बॉर्डर से हटाया जाए तो कानून व्यवस्था ठीक हो जाएगी. बात बात पर सस्पेंड करो तो कानून व्यवस्था ठीक हो जाएगी. नचाओ कठपुतली की तरह सिपाही को तो कानून व्यवस्था ठीक हो जाएगी . क्या मिलता है इन्हें ये सब करके , अरे लोग अपने हक के लिये लड़ते हैं मगर सिपाही तो कुछ बोल भी नही सकता . कुछ गंदे लोग तो हर विभाग में हैं मगर सुधार चाहते हो तो सिपाही की जिंदगी में झांक कर देखो , असलियत तो ये है कि सिपाही को सिर्फ इतना ही वेतन मिलता है कि वो बस अपना और अपने बच्चों का किसी तरह पेट पाल सके.
अगर उसके घर में उसकी माँ या बाप बीमार हो जाये तो समझो आ गयी भूखों मरने की नौबत. सिर्फ साइकिल भत्ता देकर अधिकारी , नेता और आम जनता यह समझती है कि पुलिस तुरंत पहुचे मौके पर. वर्दी एकदम चमकनी चाहिए मगर वर्दी का जो पैसा मिलता है उसमें केवल बमुश्किल एक पैंट ही बन पाती है वो भी साल में एक बार. जो ग्रेड पे है ही नहीं उसे जबरजस्ती बना कर सिपाही पर थोप दिया गया. छुट्टी के तो क्या कहने अगर भूल से भी EL मांग ली तो समझो सबसे बड़े अपराधी हमी हैं ऐसी पूछताछ करते हैं. जहां सिपाहियों के रहने का बैरक है वहां की हालत तो ऐसी की जानवर भी बीमार पड़ जाए. सिपाही के रहने के लिए जो मकान बने हैं उनकी ये हालात है कि परिवार के रहने के बिल्कुल भी काबिल नही हैं. इन्ही सब परिस्थितियों से मजबूर होकर कुछ सिपाही गलत रास्ते इख्तियार कर लेते हैं. कहावत है कि कानून से मत खेलो मगर यहां सब कानून के रखवालों से ही गिल्ली डंडा खेल रहे हैं. कितनी सरकारें आयी और गयी सब ने अपने मन की की , मगर सिपाहियों के भले के बारे में भी कोई सोचे ऐसी कोई सरकार नही आई. मैं माननीय मुख्य मंत्री महोदय और अधिकारियों से विनती करता हूँ कि थोड़ा तो सोचिये हमारे लिए हमे वातानुकूलित कमरे नही चाहिए मगर एक ठीक ठाक कमरा तो हो जिसमें कम से कम पंखा तो चलता हो. थोड़ा तो वेतन बढ़ाओ कम से कम , हमारी मेहनत का पूरा पैसा तो दीजिये. सिपाही दिन रात ड्यूटी करता है उसे टाइम से छुट्टी तो दीजिये. अरे थोड़ी तो सुविधा दीजिये साहब ताकि लगे कि नौकरी कर रहे हैं सजा नही काट रहे जय हिंद जय भारत.