रामनगरी अयोध्या के इस संत ने की थी 28साल निरंतर खड़े रहने की साधना
अयोध्या। रामनगरी अयोध्या ऋषि, मुनियों, साधु, संतों की तपोस्थली रही है। सप्तुपरियों में अयोध्या को श्रेष्ठ माना जाता है। मर्यादापुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की विश्व विश्रुत जन्मस्थली भी है अयोध्या। रामनगरी कई धर्मों से अनुप्राणित है। विभिन्न धर्मों का संगम अयोध्या में देखने को मिलता है। वैसे तो अयोध्या में कई सिद्धपीठ हैं, ऐसे दर्जनों संतों की तपोभूमि भी है अयोध्या जिनके सीधे से भगवान से साक्षात्कार होता रहा है। इन्हीं संतों में से एक थे भगवानदास खड़ेश्वरी बाबा। इन्होंने निरंतर खड़े रहने की साधना की और उस पर विजय प्राप्त की जिससे इनका नाम खड़ेश्वरी बाबा कहलाया।
रामनगरी अयोध्या के रामवैदेही मंदिर में अपनी धुनि रमाने वाले साधुता के प्रतीक, साधनारत रहे खड़ेश्वरी बाबा भी ऐसे संतों में शुमार था जिनका भगवान से साक्षात्कार अक्सर होता रहता था। तीर्थाटन करतेक हुये सन् 1970 के लगभग वे राम की धरती पर आये तो बस यही रच-बस गये। जिस स्थान पर उन्होंनें एक झोपड़ी डालकर धूनी रमाई थी आज उस स्थान पर सुभव्य रामवैदेही मंदिर स्थापित है। 1982 में इस स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। भगवान दास जी ने सन् 1957 में निरन्तर खड़े रहने का संकल्प लिया कितनी भी दिक्कतें आयी पर वे इस संकल्प से डिगे नहीं। वे पूरे 28 वर्ष तक निरन्तर खड़े रहे जो उनकी अगाध साधना एवं भक्ति का परिचायक है। लंबे समय निरंतर खड़े रहने के कारण पैर भी घावयुक्त हो गया था, लेकिन दृढसंकल्प के आगे उनका यह दर्द भी गौण साबित होता रहा।
रामनगरी अयोध्या स्थित रामवैदही मंदिर के वर्तमान महांत व खड़ेश्वरी बाबा के शिष्य गौ-संतसेवी रामप्रकाश दास जी महाराज बताते हैं कि 1982 में मंदिर में विधिविधान पूर्वक भगवान राम एवं मां सीता के विग्रह की स्थापना की गयी। अपने आराध्य के समीप्य जिस तरह उन्होंने कठिन साधना की वह अद्भुत, अविश्वसनीय एवं अकल्पनीय है। उन्होंने बताया कि मंदिर में स्थापित भगवान रामवैदेही जी का 35वां प्राकट्योत्सव आगामी 5 मार्च को विविध धार्मिक अनुष्ठानों के मध्य धूमधाम से मनाया जायेगा।
Report- Nitin Mishra