क्या कारगर होगा यूपी चुनाव में बिहार फार्मूला
यूपी चुनाव में एक बार फिर बिहार फार्मूला इस्तेमाल करने की तैयारी है ।राहुल गांधी जहां अपने यूपी के ड्रीम प्रोजेक्ट को किनारे रख समाजवादी पार्टी से गठबंधन कर हर हाल में नरेंद्र मोदी को यूपी जीतने से रोकना चाहते हैं , वही अखिलेश यादव भी कांग्रेस से गठबंधन कर भाजपा विरोधी मतों के बिखराव को रोकना चाहते है। यूपी की कुल आबादी में लगभग 20% आबादी मुस्लिम की है ।जो लगभग 134 सीटों पर अपना प्रभाव छोड़ती है । इनमें से 125 विधानसभा सीट तो ऐसी है जिन पर मुस्लिम मत निर्णायक की भूमिका भी होता है । दरअसल सपा कांग्रेस गठबंधन मतों के उस गुणा गणित पर आधारित है जो 2017 में सत्ता के सिंहासन पर बैठा सकती है ।राहुल और अखिलेश दोनों जानते हैं कि यूपी के विधानसभा चुनाव में जिसको भी 29 परसेंट वोट मिले हैं उसी को यूपी के सत्ता की चाबी भी मिली है , 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 29.1 प्रतिशत वोट मिले थे। लिहाजा समाजवादी पार्टी पूर्ण बहुमत से यूपी में सरकार बनाने में सफल रही थी । इसी तरह 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी को 30% के करीब मत मिले थे और यूपी में बहुमत से बसपा की सरकार बन गई थी। समाजवादी पार्टी कांग्रेस और रालोद के बीच होने वाले इस गठबंधन को लेकर सपा और कांग्रेस दोनो उत्साहित है ।कांग्रेस के यूपी प्रभारी गुलाम नबी आजाद ने तो ऐलान कर दिया है की यह गठबंधन यूपी में सरकार बनाने के लिए हुआ है और अगली सरकार हमारी होगी ।वहीं शीला दीक्षित ने भी कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद का अपना दावा छोड़ दिया है उन्होंने कहा की गठबंधन होने की स्थिति में अखिलेश ही यूपी के मुख्यमंत्री होंगे । अगर यूपी में कांग्रेस और सपा का गठबंधन होता है तो यह पहली बार होगा। हालांकि अखिलेश यादव के नए कोच रामगोपाल यादव ने साफ कर दिया है की सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होने जा रहा है।यही बात दोहरा कर गुलाम नबी आजाद ने भी गठबंधन होने के साफ संकेत दे दिए हैं । अगले 48 घंटे में यूपी के नए गठबंधन की पूरी का पटकथा सामने आ जाएगी। बताया जाता है की कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सीनियर पार्टनर की भूमिका में होंगे , जबकि रालोद जूनियर की भूमिका में । सूत्रों की माने तो इस गठबंधन में कांग्रेस को 90 से 100 सीटें मिल सकती है । वही बहुजन समाज पार्टी में इसे अधबनी खिचड़ी करार दिया है तो भाजपा ने सलाह दे डाली कि बहन मायावती को भी मोदी के खिलाफ गठबंधन में शामिल कर लें , क्योंकि सभी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी से डर गई है।